GHAZAL by DR SABIR PANIPATI
YEH KYON SOCHE’N KI VO DAD-E-WFAA DETE TO KYA HOTA
JO RONE PE BHI PAABANDI LGAA DETE TO
KYA HOTA
LGAA RAKHHI HAI DIL ME AAG UN KI BENIAAZI NE
N JANE JO VO DAAMAN SE HWAA DETE TO
KYA HOTA
DIL-O-JA’N UNKI NAZRO’N MEIN NAHI JANCHTE QYAAMAT HAI
YE BE-MAANI SI BAATEI’N HAIN KI KYA
DETE TO KYA HOTA
TADPANE KI IJAAZAT HAI, YEH UNKI MEHARBAANI HAI
VO HANS KAR TAAL
JAATE HAIN, SZAA DETE TO KYA HOTA
BADE KAAYA’N HAIN JINKA NAAM HAMNE SHEIKH RAKHHA HAI
YEH GAALI BHI VO HAMKO BARMLA DETE
TO KYA HOTA
DWAA DENE ME GAFLAT FIR BHI KAM AAYI TABEEBO’N KE
HAME MARNA BAHAR-ANDAAZ THA, DETE TO
KYA HOTA
FAKAT KUCHH DAAG SEEN’E ME CHHIA LAAYE HAIN DEEWAAN’Y
YE PUNJI BHI JO RAHON ME LUTA DETE
TO KYA HOTA
BAHUT ACHHA HUA MAHFIL SE UTTH KA
CHAL DIYE ’ SAABIR’
BHRE BAITHE THY KOI GUL KHILA DETE TO KYA HOTA
मेरे पापा डॉ दौलत राम “साबिर” पानीपती कि एक ग़ज़ल पेश है
ग़ज़ल
ये क्यों सोचें के वो दादे वफ़ा देते तो क्या होता,
जो रोने पे भी पाबंदी लगा देते तो क्या होता !
लगा रखी है दिल में आग उनकी बेनियाज़ी ने,
ना जाने जो वो दामन से हवा देते तो क्या होता!
खुशां मर्ग-ए- तमन्ना वो अयादत को नहीं आये ,
जो इस ख़्वाबीदा फ़ितने को जगा देते तो क्या होता!
दिलो जां उनकी नज़रों में नहीं जंचते कयामत हो,
ये बे माने सी बातें हैं के क्या देते तो क्या होता !
तड़पने की इजाज़त है यह उनकी मेहरबानी है ,
वो हंस कर टाल जाते हैं सज़ा देते तो क्या होता !
बड़े कायां है उनका नाम हमने शेख़ रक्खा था ,
ये गाली वो भी हम को बर मला देते तो क्या होता !
दवा देने के गफ़लत फिर भी काम आई तबीबों के ,
हमे मरना बहर अंदाज़ था देते तो क्या होता !
फ़कत कुछ दाग़ सीने में छुपाये थे दीवाने ने ,
ये पूंजी भी जो राहों में लुटा देते तो क्या होता !